Sailesh kumar biography examples

जोधपुर.  60 का दशक दस्तक दे रहा था। उन दिनों मुंबई में दो सुन्दर चेहरे अलग-अलग फिल्म स्टूडियो में चक्कर काटते हुए अक्सर दिख जाते थे। शाम को दोनों मिलते और अपने-अपने संघर्षों की कहानी सुनाते। दोनों जल्दी ही फिल्म आकाश पर छा गए। मुंबई में एकसाथ फिल्मी सफर शुरू करने वाले ये शख्स थे- जोधपुर में जन्मे अभिनेता शैलेश कुमार और पंजाब के एक गांव से आए धर्मेंद्र। शैलेश कुमार को जब बलराज साहनी और मीना कुमारी जैसी दिग्गज हस्तियों वाली पहली फिल्म “भाभी की चूड़ियां’ में टाइटल रोल मिला तो धर्मेंद्र ने शैलेश से कहा-”तू लकी है यार।’ बाद में फिल्म “काजल’ में धर्मेंद्र और शैलेश कुमार एकसाथ दिखाई दिए।

 

इस फिल्म में मीना कुमारी और राजकुमार जैसे सितारे थे। इसमें अपने समय का एक मशहूर गीत शैलेश कुमार पर फिल्माया गया था, जिसे पर्दे पर मीना कुमारी ने गाया-”मेरे भैया, मेरे चंदा, मेरे अनमोल रतन।’ धर्मेंद्र और शैलेश की जोड़ी उन दिनों किस तरह एकसाथ सक्रिय थी, इसका अंदाजा मुंबई की पत्रिका “फिल्मी दुनिया’ के जून, 1966 के अंक में छपे एक आलेख की इन पंक्तियों से लगाया जा सकता है-”शैलेश कुमार अभिनेता धर्मेंद्र के बाद वह दूसरा अभिनेता है जो तेजी से सफलता की ओर निरंतर बढ़ता ही जा रहा है और जो प्रत्येक दिन शूटिंग में ही व्यस्त रहता है।

 

शायद ही कोई दिन ऐसा हो जब वह शूटिंग कर रहा हो। ...पिछले एक सप्ताह में ही उसके तीन नए चित्रों का मुहूर्त हुआ जिनमें वह कल्पना, तनुजा और एक अन्य हीरोइन के साथ हीरो के रूप में रहा है।’शैलेश कुमार का असली नाम शंभुनाथ पुरोहित था और वे 1960 में जोधपुर से 75 रुपये लेकर माया नगरी मुंबई पहुंचे थे। पुत्र देवेन्द्र नाथ बताते हैं-”हमारा परिवार काफी सम्पन्न था, लेकिन वे अपने पिताजी से पैसे नहीं मांगते थे।

 

उन्हें शादी में ससुराल से जो सोने की चेन मिली, उसे उन्होंने बेचा, जिसके 75 रुपये मिले।’ शैलेश कुमार ने कोई 30 से ज्यादा फिल्में कीं। मनोज कुमार के साथ फिल्म “शहीद’ में शैलेश कुमार के काम को काफी सराहा गया। तब “शहीद’ फिल्म की पूरी टीम को तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अपने निवास पर बुलाकर रात्रि भोज दिया था।

 

जोधपुर में 21 जनवरी, 1939 को जन्मे शैलेश कुमार कोई दो दशक तक मुंबई में रहे। तीस की उम्र में 1969 में उन्हें थाइरॉइड की गंभीर बीमारी हो गई। उनकी पत्नी पुष्पा बताती हैं-”उस जमाने में थाइरॉइड के इलाज के लिए उन्हें रेडिएशन लेनी पड़ी, जिसकी सुविधा तब टाटा अस्पताल में थी, जहां कैंसर रोगियों का इलाज होता था।

 

अफवाह फैल गई कि उन्हें कैंसर हो गया।’ शैलेश कुमार को काम मिलना कम हो गया था। वे 1978 में जोधपुर लौट आए और मुंबई को सदा के लिए अलविदा कह दिया। पिछले दिनों 21 अप्रैल, 2017 को उन्होंने जोधपुर में ही आखिरी सांस ली। [email protected]

 

शूटिंग देखने आए थे, जगा अभिनय करने का कीड़ा 

शैलेश कुमार एक बार मुंबई आए तो फिल्म "बहरूपिया' की शूटिंग देखने गए। वहां फिल्म निर्माता रती भाई पुनटकर ने शैलेश कुमार को देखकर उनसे पूछा-"फिल्म में एक्टिंग करोगे?' इस पर शैलेश ने कहा कि वे फिल्मों के बारे में कुछ नहीं जानते। इसके बाद शैलेश कुमार जोधपुर लौट गए, लेकिन अभिनय का बीज उनके दिमाग में पड़ चुका था।

 

वे फिर मुंबई आए-वापस जाने के लिए। इस बार मुंबई के "फिल्मालय' एक्टिंग स्कूल में उन्होंने 5 माह तक प्रशिक्षण भी लिया। फिल्मों में जम भी गए, लेकिन नियति ने फिर सदा के लिए उन्हें वापस जोधपुर बुला लिया। 


संघर्ष के दिनों से धर्मेंद्र-शैलेश कुमार की दोस्ती 
मुंबईमें धर्मेंद्र और शैलेश कुमार गहरे दोस्त थे। दोनों के संघर्ष की कहानी गैराज से शुरू हुई। बाद में शैलेश कुमार को जोधपुर के ग्लास फैक्ट्री मालिक हरिनारायण एंड संस के मरीन लाइन्स स्थित दफ्तर में रात को सोने की जगह मिल गई जबकि धर्मेंद्र को मुलुंड में एक रेलवे क्वार्टर में रह रहे पंजाबी परिवार के यहां छत पर रात बिताने का ठिकाना मिल गया।

 

जोधपुर के स्वतंत्रता सेनानी मामा अचलेश्वर प्रसाद शर्मा के पुत्र दिनेश शर्मा शैलेश कुमार के अच्छे दोस्त थे, जो अक्सर उनसे मिलने मुंबई जाते थे। एक बार का उन्होंने किस्सा सुनाया-"मैं शैलेश कुमार और धर्मेंद्र मरीन लाइन्स पर शाम को एक जगह मिले, पार्टी हुई। हमें लगा कि धर्मेंद्र को रात में उनकी हालत को देखते हुए अकेले नहीं जाने देना चाहिए।

 

एक टैक्सी से हम उसे मुलुंड में रेलवे यार्ड के पास एक क्वार्टर पर छोड़ने गए। दरवाजा खटखटाने पर निकले आदमी ने कहा-"तुम रोज लेट आते हो।' फिर हमें देखकर वह धीरे-धीरे कुछ बोला। धर्मेंद्र अंदर से गद्दे-चादर लाया और हम तीनों छत पर सोने चले गए। पूरे समय ट्रेनों की धड़-धड़ करती आवाजों के बीच छत पर रात गुजारी। 

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