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हेलो दोस्तों, आज के इस आर्टिकल में हमने “यशपाल का जीवन परिचय” (yashpal biography in Hindi) के बारे में संपूर्ण जानकारी दी है। इसमें हमने यशपाल का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएं एवं कृतियां, उपन्यास, भाषा शैली एवं साहित्य में स्थान और यशपाल की विशेषताएं को भी विस्तार पूर्वक सरल भाषा में समझाया गया है, ताकि आप परीक्षाओं में ज्यादा अंक प्राप्त कर सकें। इसके अलावा इसमें हमने यशपालजी के जीवन से जुड़े प्रश्नों के उत्तर भी दिए हैं, तो आप इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें।
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विद्यार्थी ध्यान दें कि इसमें हमने यशपालजी की जीवनी के बारे में संक्षेप में एक सारणी के माध्यम से समझाया है।
यशपाल की जीवनी –
नाम | यशपाल |
जन्म | 3 दिसंबर, 1903 ई० |
जन्म स्थान | फिरोजपुर छावनी (पंजाब) |
मृत्यु | 26 दिसंबर, 1976 ई० |
पिता का नाम | श्री हरी लाल |
माता का नाम | प्रेमा देवी |
पैशा | लेखक, उपन्यासकार, निबंधकार, कहानीकार, नाटककार |
साहित्य काल | आधुनिक काल |
पुरस्कार | पद्मभूषण, देव पुरस्कार |
प्रमुख रचनाएं | दादा कामरेड, देशद्रोही, पिंजरे की उड़ान, तर्क का तूफान, नशे की बात, न्याय का संघर्ष आदि। |
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यशपालजी हिंदी साहित्य के एक महान कथाकार हैं। इनका जन्म 03 दिसम्बर, सन् 1903 ईस्वी को फिरोजपुर छावनी (पंजाब) में हुआ था। इनके पूर्वज हिमाचल प्रदेश के गुरुकुल कांगड़ा जिले के निवासी थे। यशपालजी ने अपनी आरम्भिक शिक्षा गुरुकुल कांगड़ा में ही प्राप्त की। बाद में ये नेशनल कॉलेज लाहौर में भर्ती हो गए तथा वहाँ से इन्होंने बी.ए.
की उपाधि प्राप्त की। वहीं इनका परिचय भगत सिंह और सुखदेव जैसे क्रान्तिकारियों से हुआ।
यशपाल जी ने अपने सहपाठियों के साथ लाला लाजपत राय के स्वदेशी आन्दोलन में भाग लिया। सन् 1921 के बाद ये सशस्त्र क्रान्ति के आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने लगे। धीरे-धीरे इनका झुकाव मार्क्सवाद की ओर होने लगा। दिल्ली में जब ये बम बना रहे थे तो इनको गिरफ्तार कर लिया गया। 7 अगस्त, 1936 ई० को बरेली जेल में इन्होंने प्रकाशवती कपूर से विवाह किया। सन् 1938 ई० में ये जेल से रिहा हुए और ‘विप्लव’ मासिक पत्रिका का प्रकाशन करने लगे लेकिन सन् 1941 ई० में ये फिर जेल चले गए। जेल-जीवन में भी ये स्वाध्याय तथा कहानी-लेखन में कार्यरत रहे। 26 दिसंबर, सन् 1976 ईस्वी में इस महान् साहित्यकार का देहान्त हो गया।
मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित होने के कारण यशपालजी ने अपने उपन्यासों तथा कहानियों में यथार्थ का वर्णन किया है। इन्होंने रूढ़ियों से ग्रस्त मध्यवर्गीय लोगों की दयनीय स्थिति पर प्रकाश डाला है। ‘चार आने’, ‘गवाही’ ‘एक राज’ आदि कहानियों में इसी स्थिति का वर्णन किया गया है। कुछ उपन्यासों में यशपालजी ने श्रमिक वर्ग के कष्टों और दुःखों का यथार्थ वर्णन किया है। ‘दिव्या’ नामक उपन्यास में इन्होंने पग-पग पर दलित नारी की करुण कथा का वर्णन किया है। इनका उपन्यास झूठा सच भारत विभाजन की त्रासदी का मार्मिक दस्तावेज़ माना जाता है। यशपालजी एक सफल कथाकार होने के साथ-साथ सफल निबन्धकार भी हैं। इन्होंने अपने दृष्टिकोण के आधार पर समाज की गली सड़ी रूढ़ियों तथा विसंगतियों पर जम कर प्रहार किया है। वस्तुतः यशपालजी ने अपने दृष्टिकोण को व्यक्त करने के लिए ही साहित्य की रचना की है।
यशपाल जी की कहानियों के कथानक सरल एवं स्पष्ट हैं। ये अधिकतर मध्यवर्गीय जीवन से चुने गये हैं। कथावस्तु जन-जीवन के व्यापक क्षेत्र से सम्बद्ध है तथा सामाजिक जीवन के विविध पक्षों को प्रस्तुत करती है। इन्होंने विविध वर्गों, स्थितियों एवं जातियों के पात्रों का चयन किया है तथा इनके जीवन-संघर्ष विद्रोह एवं उत्साह के सजीव चित्र प्रस्तुत किये हैं। चरित्र-चित्रण मनोवैज्ञानिक है। यशपालजी सामाजिक जीवन के सन्दर्भ में मानव के मानसिक द्वन्द्रों के कथाकार थे।
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यशपालजी ने अपनी लेखनी में हिंदी गद्य-साहित्य की श्रीवृद्धि की। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं—
(i) उपन्यास — दादा कामरेड, देशद्रोही, पार्टी कामरेड, दिव्या, मनुष्य के रूप, अमिता, क्यों फँसे, मेरी तेरी उसकी बात, बारह घंटे, अप्सरा का श्राप, झूठा सच आदि।
(ii) कहानी संग्रह — पिंजरे की उड़ान, तर्क का तूफान, ज्ञान दान, वो दुनिया, अभिशप्त, फूलों का कुर्ता, धर्म युद्ध, चित्र का शीर्षक, उत्तराधिकारी, उत्तमी की माँ, सच बोलने की भूल, भास्मवृत चिन्गारी, चार आने, फूल की चोरी, कर्मफल, पाॅंव तले की डाल आदि।
(iii) नाटक — नशे की बात, रूप की परख, गुडबाई ददें दिल आदि।
(iv) व्यंग्य लेख — चक्कर क्लब आदि।
(v) संस्मरण — सिंहावलोकन आदि।
(vi) निबन्ध — न्याय का संघर्ष, मार्क्सवाद, रामराज्य की कथा आदि।
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यशपालजी सही अर्थों में जनवादी कथाकार थे। अतः इन्होंने अपने साहित्य में सहज, सरल तथा भावानुकूल खड़ी बोली का प्रयोग किया है। इनकी शब्दावली तत्समू तद्भव शब्दों के साथ ही उर्दू फारसी के शब्दों से ऐसे घुली-मिली हुई है कि पाठक को यही पता नहीं चलता कि वह हिंदी पढ़ रहा है अथवा उर्दू। इस लिहाज़ से इनकी भाषा हिन्दुस्तानी भाषा का दर्जा प्राप्त करती है। शब्दों की सरलता के साथ वाक्यों की सहजता व रोचकता इनकी भाषा का अन्यतम गुण है।
यशपाल जी ने प्रायः वर्णनात्मक, संवादात्मक तथा व्यंग्यात्मक शैलियों का प्रयोग किया है। भाषा के बारे में यशपाल जी का बड़ा उदार दृष्टिकोण था। इनकी भाषा आम आदमा का भाषा है। यही कारण है कि इनका साहित्य जन साधारण में अत्यधिक लोकप्रिय हुआ।
यशपालजी यशस्वी कथाकार थे। यथार्थवादी तथा प्रगतिशील कहानीकारों में इनका विशिष्ट स्थान है। सामाजिक विकृतियों पर इन्होंने बड़े तीखे व्यंग्य किये हैं। कहानियों में कथोपकथन अकत्रिम एवं स्वाभाविक हैं। ये पात्रों की मनोदशा का स्पष्ट चित्र प्रस्तुत करने के साथ-साथ कथावस्तु को विकसित करने में विशेष योगदान देते थे।
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यशपाल जी के जीवन से जुड़े प्रश्न उत्तर
यशपाल जी यशस्वी कथाकार थे। यथार्थवादी तथा प्रगतिशील कहानीकारों में इनका विशिष्ट स्थान रहा है। मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित होने के कारण यशपालजी ने अपने उपन्यासों तथा कहानियों में यथार्थ का वर्णन किया है। इन्होंने सन् 1976 ई० में अपने उपन्यास, मेरी-तेरी उसकी बात के लिए हिंदी भाषा का साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता और पद्म भूषण के भी प्राप्तकर्ता थे। सन् 1960 ई० में खोजे गए एक ब्रिटिश इंटेलिजेंस पत्र से पुष्टि होती है कि यशपाल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारियों पर एक ब्रिटिश प्रायोजित जासूस था।
यशपाल का जन्म कब और कहां हुआ था?
यशपालजी का जन्म 03 दिसम्बर, सन् 1903 ईस्वी को पंजाब, फिरोजपुर छावनी में एक साधारण परिवार में हुआ था।
यशपाल की पहली कहानी कौन सी है?
जेल जीवन में भी यशपालजी स्वाध्याय कहानी-लेखन में कार्यरत रहे। जेल के अपने इस प्रवास में ही इन्होंने अपना पहला कहानी-संग्रह ‘पिंजरे की उड़ान’ लिखा। यशपालजी का यह दीर्घ प्रवास एक और दृष्टि से भी महत्वपूर्ण समझा जा सकता है।
यशपाल जी का पहला उपन्यास ‘दादा कामरेड’ है जो सन् 1941 ई० में प्रकाशित हुआ था। झूठा सच इनकी कालजयी कृति है यह उपन्यास दो भागों में ‘वतन और देश’ सन् 1958 ई० और ‘देश का भविष्य’ सन् 1960 ई० में प्रकाशित हुआ था।
यशपाल जी की रचनाएं कौन कौन सी है?
यशपाल जी की प्रमुख रचनाएं एवं कृतियां निम्न हैं – पिंजरे की उड़ान, ज्ञानदान, अभिशप्त, तर्क का तूफान, भस्मावृत चिन्गारी, वो दुनिया, फूलो का कुर्ता, धर्मयुद्ध, उत्तराधिकारी, चित्र का शीर्षक, दादा कामरेड, देशद्रोही, पार्टी कामरेड, दिव्या, मनुष्य के रूप में, अमिता, झूठा सच, फूल की चोरी, ‘चार आने, कर्मफल, पाँव तले की डाल आदि।
यशपाल की मृत्यु कब और कहां हुई थी?
यशपालजी की मृत्यु 26 दिसंबर, सन् 1976 ईस्वी को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुई थी।